Facts About Shodashi Revealed

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कामपूर्णजकाराख्यसुपीठान्तर्न्निवासिनीम् ।

सर्वेषां ध्यानमात्रात्सवितुरुदरगा चोदयन्ती मनीषां

॥ इति त्रिपुरसुन्दर्याद्वादशश्लोकीस्तुतिः सम्पूर्णं ॥

Shodashi is deeply connected to The trail of Tantra, the place she guides practitioners toward self-realization and spiritual liberation. In Tantra, she's celebrated as being the embodiment of Sri Vidya, the sacred knowledge that results in enlightenment.

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥१२॥

This mantra holds the ability to elevate the head, purify feelings, and join devotees for their bigger selves. Listed here are the considerable great things about chanting the Mahavidya Shodashi Mantra.

षोडशी महाविद्या प्रत्येक प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं। मुख्यतः सुंदरता तथा यौवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होने के परिणामस्वरूप मोहित कार्य और यौवन स्थाई रखने हेतु इनकी साधना अति उत्तम मानी जाती हैं। त्रिपुर सुंदरी महाविद्या संपत्ति, समृद्धि दात्री, “श्री शक्ति” के नाम से भी जानी जाती है। इन्हीं देवी की आराधना कर कमला नाम से विख्यात दसवीं महाविद्या धन, सुख तथा समृद्धि की देवी महालक्ष्मी है। षोडशी देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध अलौकिक शक्तियों से हैं जोकि समस्त प्रकार की दिव्य, अलौकिक तंत्र तथा मंत्र शक्तियों की देवी अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। तंत्रो में उल्लेखित मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्तम्भन इत्यादि जादुई शक्ति षोडशी देवी की कृपा के बिना पूर्ण नहीं होती हैं।- षोडशी महाविद्या

Goddess Shodashi has a third eye over the forehead. She's clad in pink costume and richly bejeweled. She sits on a lotus seat laid on a golden throne. She is demonstrated with four arms where she retains five arrows of bouquets, a noose, a goad and sugarcane for a bow.

The iconography serves being a focus for meditation and worship, letting devotees to attach Along with the divine Vitality with the Goddess.

नाना-मन्त्र-रहस्य-विद्भिरखिलैरन्वासितं योगिभिः

यहां click here पढ़ें त्रिपुरसुन्दरी कवच स्तोत्र संस्कृत में – tripura sundari kavach

कालहृल्लोहलोल्लोहकलानाशनकारिणीम् ॥२॥

षोडशी महाविद्या : पढ़िये त्रिपुरसुंदरी स्तोत्र संस्कृत में – shodashi stotram

पञ्चब्रह्ममयीं वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥५॥

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